शहर...

शहर...


इस भागते शहर में ठहरा है हर कोई,

है भीड़ दो जहाँ की, तन्हा है हर कोई!

 

जीना नहीं इसे एक जद्द-ओ-जहद कहो,

सबको यही वहम है, जिन्दा है हर कोई!

 

ढोता है ख़्वाहिशों की दिन-रात बेड़ियाँ,

अपनी ही क़ैद का ख़ुद पिंजरा है हर कोई!

 

देता नहीं किसीको जीने की एक वजह,

जीने की सौ नसीहत देता है हर कोई!

 

बस वक़्त पे कोई भी अपना नहीं मिला,

वैसे तो इस शहर में अपना है हर कोई!

 

लुटती है इस शहर में दिन-रात आबरू,

अँधा है ये शहर और बहरा है हर कोई!

 

यूँ तो पता हैं सबको अपनी बुराइयाँ,

अपनी नज़र में फिर भी अच्छा है हर कोई!

 

‘अल्फ़ाज़’ छोड़िए भी बातें उसूल की,

क़ीमत सही मिले तो बिकता है हर कोई!

अल्फ़ाज़...

 जद्द-ओ-जहद (Jadd-O-Jahad) = खींचतान, Struggle, Tug Of War

 उसूल (Usool) = सिद्धांत, नियम, Fundamentals, Principles

हालात

हालात

ऐसे हालात ही कुछ खड़े हो गए,

वक़्त से पहले ही हम बड़े हो गए!

 

ख़ुद से हुशियार रहना ज़रूरी लगा,

सामने जब मेरे आईने हो गए!

 

एक इंसान जिसमें बुराई न हो,

गुमशुदा ढूँढते-ढूँढते हो गए!

 

आप जैसों को कहती है दुनिया भला?

फिर तो अच्छा हुआ हम बुरे हो गए!

 

बात से ध्यान सबका भटकना ही था,

बात के जब कई माएने हो गए!

 

जानते हैं, हमारी सुनोगे नहीं,

हम भी ख़ामोश बस इसलिए हो गए!

 

रोज़ हैरान होता हूँ ये सोच कर,

साल कितने ही तुमसे मिले हो गए!

 

हाल ‘अल्फ़ाज़’ के दिल का ऐसा है कि,

एक घर पे कई ज़लज़ले हो गए!

||| अल्फ़ाज़ |||

ग़ज़ल

ग़ज़ल

 ये जो मीठी सी तकरार की बात है,

प्यार से कीजिये, प्यार की बात है!

 

लब कहें, लब सुने, बिन कहे सब सुने,

इस तरह बोलिए, राज़ की बात है!

 

तुमसे कैसे तुम्हारी शिक़ायत करूँ,

गाल को चूमती ज़ुल्फ़ की बात है!

 

आप कहते हैं तो जान दे देते हैं,

कैसे काटें भला, आप की बात है!

 

जाने कितनी नमाज़ें क़ज़ा हो गईं,

इश्क़ यूँही नहीं कुफ़्र की बात है!

 

शायरी में मेरी ख़ास कुछ भी नहीं,

दाद देना तेरा, दाद की बात है!

 

बात ‘अल्फ़ाज़’ जो है कहीं भी नहीं,

उनके चेहरे के दीदार की बात है!

||| अल्फ़ाज़ |||


तकरार (Takrār) – वाद-विवाद, नोकझोंक, Argument, Dispute

लब (Lab) – होंठ, अधर, Lips

क़ज़ा (Qazaa) – समाप्त, Omitted,

कुफ़्र (Kufr) – धर्म-विसंगत, धर्मविरुद्ध, Great Sin

दीदार (Dīdār) – दृश्य, नज़ारा, Sight, View, Appearance

#नमाज़-ए-मोहब्बत

#नमाज़-ए-मोहब्बत

याद करने में तुझको सुकूँ न रहा,

आशिक़ी में मेरी अब जूनूँ न रहा!

 

आईने की भी अब तो उमर हो चली,

मेरा चेहरा मेरे हू-ब-हू न रहा!


पास जितने थे हम दूर उतने हुए,

तुझमें मैं न रहा मुझमें तू न रहा!

 

मेरी आँखों से तू इतना ओझल हुआ,

मेरे ख़्वाबों में भी तू रु-ब-रु न रहा!

 

हम नमाज़-ए-मोहब्बत क्या करते अदा,

जब अज़ानें हुईं तब वुज़ू न रहा!

 

दिल धड़कता नहीं अब तेरे नाम से,

अब तू ‘अल्फ़ाज़’ की आरज़ू न रहा!

||| अल्फ़ाज़ |||



सुकूँ (Sukūñ) = Peace, शांति

जुनूँ (Junūñ) = Frenzy, Madness, उन्माद

हू-ब-हू (Hū-Ba-Hū) = Exactly, समान

रू-ब-रू (Rū-Ba-Rū) =Face To Face, In The Presence Of, सामने, आमने-सामने

अज़ानें (Azāneñ) = Azaan- Calls To Prayer (Plural)

नमाज़-ए-मोहब्बत (Namāz-E-Mohabbat) = Prayer, Supplication, Invocation Of Love

वुज़ू (Vuzuu) = Ablution, Sacred Ablution Performed Before Muslim Prayer, And Which Consists In Washing, First The Hands, Then The Mouth Inside, Then Throwing Water On The Forehead, Washing The Whole Face, The Arms, And Lastly The Feet)



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जब सफ़र में कोई शाम ढल जाती है!
याद बन के शमा दिल में जल जाती है!

जाने क्या बात है तेरे दीदार में,
मेरी तबियत ज़रा सी संभल जाती है!

जोर क़ुदरत पे इंसाँ का चलता नहीं,
रेत मुट्ठी से आख़िर फिसल जाती है!

तेरे जाने से हम ऐसे बेजान हैं,
रूह जैसे बदन से निकल जाती है!

झूठ की गोलियां सबको मीठी लगीं,
बात सच्ची ज़माने को खल जाती है!

हार मत मानिए, ये तो हालात हैं,
हौसला हो तो क़िस्मत बदल जाती है!

अपनी ज़िद पे जो ‘अल्फ़ाज़’ क़ायम रहे,
वो शमा आँधियों में भी जल जाती है
!

अल्फ़ाज़...

 

आज अपना पता हम लगाने चले!

आज अपना पता हम लगाने चले!


 देखते हैं सफ़र किस ठिकाने चले,

आज अपना पता हम लगाने चले!

 

हम तलातुम की नज़रों में चुभने लगे,

दो किनारों को जब भी मिलाने चले!

 

अपनी जुर्अत को हम आज़माने चले,

आईने से निगाहें मिलाने चले!

 

जाने कितने ही सच हमने झुठला दिये,

झूठ जब एक ज़रा सा छुपाने चले!

 

कैसे कैसे न हमपे निशाने चले,

आज हम जो ज़रा मुस्कुराने चले!

 

आज फिर नए सिरे से वो याद आ गया,

आज फिर नए सिरे से भुलाने चले!

 

हाथ अक्सर जलाकर चले आए हैं,

आग बस्ती की जब भी बुझाने चले!

 

कितना बिकना पड़ेगा, पता चल गया,

आज ‘अल्फ़ाज़’ रोटी कमाने चले!

lll अल्फ़ाज़ lll

 

तलातुम = तूफ़ान, Tumlet

जुर्अत = दुःसाहस, Courage, Valour

Sad Shayari

Sad Shayari




अगर दिल टूट जाए तो मरम्मत हो नहीं पाती,

दोबारा प्यार होता हैमोहब्बत हो नहीं पाती!

 

कमी यारों की हैथोड़ा उमर का भी तक़ाज़ा है,

वही मौसम है पर वैसी तबीयत हो नहीं पाती!

 

ये क़ैद-ए-उम्र है जिसको ज़माना इश्क़ कहता है,

सज़ा पूरी नहीं होतीज़मानत हो नहीं पाती!

 

सुना है दिल के बारे मेंख़ुदा का दूसरा घर है,

तो क्यूँ दिल टूट जाने से क़यामत हो नहीं पाती!

 

ज़ियादा कस के थामो तो भी चीज़ें टूट जाती हैं,

ज़ियादा ध्यान रखने से हिफ़ाज़त हो नहीं पाती!

 

तुम्हारे राज़ ग़ज़लों में ज़माने को बता देते,

मगर हमसे अमानत में ख़यानत हो नहीं पाती!

 

यूँही ‘अल्फ़ाज़’ ने तुमसे वफ़ादारी नहीं छोड़ी,

ख़ुदा पर न यक़ीं हो तो इबादत हो नहीं पाती!

||| अल्फ़ाज़ |||


https://youtu.be/x7mCa5bhqBE